साथ को तरसता संगीतकार

कुर्ला - कांच का नाम सुनते ही शायद सबसे पहले आपके मन में उससे होनेवाला नुकसान ही याद आता हो। कांच से कई बार लोगों के हाथ कट जाते हैं जिससे खून निकलने लगता है। हम लोगों मे से तो कई लोग जमीन पड़े कांच को छूते ही नहीं है , इस डर के मारे की कहीं हाथ ना कट जाए। लेकिन कुर्ला के नेहरु नगर में रहनेवाले 83 वर्षीय परशुराम कबाडे ने मानों कांच से दोस्ती कर ली हो। उनकें हाथों में कांच आते ही एक एसा संगीत निकलता है जिससे लोग मंत्रमुग्ध हो जाते है। परशुराम कबाडे ने 15 साल की उम्र से ही भजन गाना शुरु कर दिया था। उस समय कोई खास वाद्ययंत्र ना होने के कारण उन्होने कांच के टुकड़ो से ही संगीत बजाना शुरु किया। कबाडे ने संगीतकार शंकर जयकिशन और हसरत जयपुरी के सामने अपनी कला को पेश किया। जिसके बाद उन्हे मोहम्मद रफी के गाने 'जिंदगी मुजको दिखादे रास्ता’ मे कांच से संगीत देने का मौका मिला। राजा हिंदुस्तानी के मशहुर गाने परदेशी -परदेशी मे भी कबाडे ने संगीत दिया है। मौजूदा वक्त में परशुराम कबाडे अपनी जीवनी चलाने के लिए रिक्शा चलाते है। अपने परिवार के साथ वह एक छोटे से कमरे में रहते है। इतना हुनर और फिल्म इंडस्ट्री में समय बिताने के बाद भी ना तो सरकार और ना ही फिल्म जगत से कोई उनका साथ देने के लिए आगे आ रहा है।

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