बुधवार, 9 सितंबर, 2020 को मराठा आरक्षण (Maratha Arakshan) से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बड़ा फैसला दिया है। नौकरी और शैक्षिक प्रवेश के लिए चालू वर्ष (2020-2021) में मराठा आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने एक अंतरिम आदेश जारी किया है कि पहले दिए गए स्नातकोत्तर प्रवेशों को नहीं बदला जाए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा जाए।
मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ-साथ आरक्षण का समर्थन करने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई की। अदालत को आरक्षण को स्थगित करने की मांग के साथ एक बड़ी पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई स्थगित करने के लिए कहा गया था।
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इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के कार्यान्वयन को तुरंत निलंबित कर दिया है। इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौंपने का भी फैसला किया है। इसलिए अब इस मामले की सुनवाई एक बड़ी पीठ के समक्ष होगी। परिणामस्वरूप, महाराष्ट्र में नौकरी और शैक्षिक प्रवेश के लिए मराठा आरक्षण लागू करना संभव नहीं होगा। केवल उन छात्रों को कुछ राहत मिलेगी क्योंकि अदालत ने कहा है कि पहले दिए गए स्नातकोत्तर प्रवेशों को नहीं बदला जाना चाहिए। अगली सुनवाई अब एक बड़ी बेंच के समक्ष होगी।
महाराष्ट्र में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (मराठा समुदाय) के लिए शिक्षा और सरकारी सेवा में 16% आरक्षण लागू करने के लिए विधानमंडल ने सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित किया था। तदनुसार, मराठा आरक्षण विधेयक 1 दिसंबर, 2018 से राज्य में लागू हुआ। हालांकि, कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है कि कानून सुप्रीम कोर्ट में बरकरार रहे।
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