मुंबई - 8 मार्च को जब महापौर और उपमहापौर का चुनाव हो रहा था तब जाकर पूरी फिल्म समझ में आई की बीजेपी और शिवसेना दोनों ने मिलकर फिल्म की पटकथा तैयार की थी,क्योंकि ये दोनों पार्टी शुरू से लेकर अब तक आपस में लड़ ही रही थी। लेकिन बीजेपी ने महापौर चुनाव में शिवसेना का सपोर्ट कर दिया। अचानक ऐसा क्या हो गया कि पारदर्शिता का राग अलापने वाली बीजेपी ने भी शिवसेना को अपना समर्थन दे दिया।
पिछले विधानसभा में भी इन दोंनो पार्टियों ने अलग अलग लड़ कर भी युति की सरकार बनाई। केडीएमसी चुनाव में भी यही देखने को मिला। जब-जब चुनाव शुरू होता है तब-तब ये दोनों पार्टियाँ एक दुसरे के खिलाफ युद्ध का शंखनाद बजा देते है, एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप शुरू कर देते हैं। लेकिन चुनाव के समाप्त होते ही सत्ता बनाने के लिए एकत्र आ जाते हैं। यही सारी कहानी इस बीएमसी चुनाव में भी देखने कि मिली। शुरू से ही एक दुसरे के खिलाफ झर उगलने के बाद भी बीजेपी ने जिस तरह से इनकार के बाद भी शिवसेना को समर्थन दिया है उसके अनुसार यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या पहले से गेम फिक्स था।
हालांकि दोनों पार्टी के आला नेताओं ने कई सभा और दिए गये कई इंटरव्यू में भी यह दावा किया था कि पार्टी न तो समर्थन देगी और न ही लेगी लेकिन बीजेपी ने अपना समर्थन देकर एक तरह से इन दोंनो पार्टियों के बीच छुपी युति को हवा दे दी है।
हालांकि राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने मुंबई देकर महाराष्ट्र को अपने पास रखा है लेकिन जिस तरफ से इन दोनों ने मिलकर मुंबईकरों को उल्लू बनाया है वह इनकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है,क्योंकि मुंबईकरों को बार बार नो उल्लू बनाविंग।