राज्य में सत्ता को लेकर सियासी समीकरण बदलते दिख रहे है। बीजेपी के साथ सत्ता और मुख्यमंत्री के पद को लेकर विवाद के कारण शिवसेना ने बीजेपी का दामन छोड़ दिया। बीजेपी से अपना साथ छूड़ाने के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद शुरु कर दी। बताया जा रहा है तीनों ही पार्टियों के बीच एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी तैयार किया गया है, इन सभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर तीनों ही पार्टियों मिलकर का करेगी। सरकार बनाने की इस माथापच्ची के बीच जो सबसे बेचारा बन कर रहा जा रहा है वह ना तो शिवसेना है , ना बीजेपी , ना कांग्रेस और ना ही एनसीपी , इन सभी राजनीतिक पार्टियों के रस्साकशी के बीच हमारा अन्नदाता यानी की इस राज्य का किसाना बेचारा बनता जा रहा है।
महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश के कारण किसानों की फसें बर्बाद हो गई है। कई किसानों को तो अपनी जेब से लगाई हुई लागत तक नहीं मिली है। जहां एक ओर बारिश के कारण पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो गई है तो वही दूसरी ओर किसानों को फसल में लगाई गई उनकी लागत तक का भूगतान नहीं हो पा रहा है।बिन मौमस बारिश के कारण किसानों की पूरी की पूरी फसल बर्दाब दो गई। किसानों की हात तो ऐसी हो गई है की आखिरकार वह जाए तो किसके पास। राज्य में ना तो सरकार है और ना ही किसानों को देखने के लिए कृषी मंत्री। राज्य में राष्ट्रपति शासन होने के कारण किसान अपना रोना भी ढंग से नेताओं के सामने नहीं रो पा रहे है क्योकी किसी भी विधायक का ज्यादातर यही जवाब होता की राज्य में तो राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है।
किसानों से मिल रहे सभी नेता
राज्य में विधानसाभ चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद भी अभी तक राज्य में सरकार नहीं बन पाई है। हालांकी सभी नेताओं ने राज्य में किसानों के लिए दौरा शुरु कर दिया है। शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे , देवेंद्र फड़णवीस ने तक राज्य में किसानों से मुलाकात शरु कर दी है। लेकिन अभी तक किसी भी किसानों की समस्या का कोई भी सामाधान नहीं किया है। किसानों की स्थिती पर सहानूभुती को सब जता रहे है लेकिन कोई भी उनकी समस्याओं को सामाधान नहीं कर रहा है।
एलान तो किया लेकिन जमीन पर नहीं आया पैसा
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने पद से इस्तीफा देने के पहले किसानों के लिए 10000 करोड़ रुपये का प्रावधान तो किया लेकिन अभी तक ये पैसा किसानों को नहीं मिला है। घोषणा करने के बाद ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर राज्य में राष्ट्पति शासन लगने के कारण अभी तक किसानों को पैसा नहीं मिला है।
किसानों को कर्ज नहीं बल्कि कृषि सहयोग
भले ही देश में किसानों को अन्नदाता कहा जाता हो लेकिन मौसम की सबसे बूरी मार इन्ही किसानों पर पड़ती है। देश में कई ऐसी संस्थाएं है जो किसानों के लिए काम करते है। इन्मही संगठनों से एक है राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति।राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति के तीसरे द्विवार्षिक सम्मेलन में पहुंचे देशभर के किसान संगठनों ने कहा कि किसानों को कर्ज नहीं बल्कि कृषि सहयोग मिलना चाहिए। इसके अलावा किसानों के हित के लिए 26 सूत्र बनाये गये हैं जो जल्द ही सरकार को सौंपा जायेगा। मंगलवार को महाराष्ट्र के वर्धा में देश के 20 किसान संगठनों के लोग पहुंचे जहां इन सूत्रों पर आम सहमति बनी और आगामी किसान आंदोलनों की रणनीति पर चर्चा हुई।
किसानों का भी प्रदर्शन
इसी बीच किसानों ने अब मुंबई में प्रदर्शन कर दिया है। कहीं सूखे तो कहीं बाढ़ के चलते तबाह हुई फसलों के मुआवजे की मांग को लेकर बड़ी संख्या में किसानों ने राजभवन की तरफ कूच किया। इस दौरान राजनीतिक पार्टियों के विरोध में नारेबाजी की गई. किसान अपने साथ नष्ट हुई फसलें भी लेकर आए थे।