बॉलीवुड का एक ऐसा एक्टर जिसने ‘गैंग्स ऑफ वासेयपुर’, ‘बॉम्बे टॉकीज’ और ‘अगली’ जैसी फिल्मों में काम किया। पर जो उसे चाहिए था वह उससे बहुत दूर था। इस एक्टर को बॉलीवुड में एक पहचान चाहिए थी एक नाम चाहिए था। पर कहते हैं समय से पहले कभी कुछ नहीं मिलता। वही इस एक्टर के साथ हुआ। पर कड़ी मेहनत और सब्र ने रंग लाया।
18 साल के कड़े स्ट्रगल के बाद इस एक्टर के हाथ एक ऐसी फिल्म लगी जिसकी तारीफ मामी फिल्म फेस्टविल में जमकर हुई और फिल्म के डायरेक्टर अनुराग कश्यप भी इस एक्टर की तारीफ करते नहीं थकते। इस एक्टर का नाम है विनीत कुमार सिंह, और फिल्म है ‘मुक्काबाज’, इस फिल्म में उन्हें लीड रोल मिला। इस फिल्म का ट्रेलर और म्यूजिक के साथ ही विनीत की बॉडी ट्रांसफर्मेशन का वीडियो धमाल मचा रहा है। फिल्म की रिलीज से पहले ‘मुंबई लाइव’ ने विनीत से खास मुलाकात की, इस दौरान उन्होंने फिल्म के अलावा खुद की पर्सनल लाइफ और स्ट्रगल के बारे में खुलकर बात की।
मुक्केबाजी की ट्रेनिंग के बारे में बताइए?
निश्चित रुप से मुक्केबाजी की ट्रेनिंग बहुत टफ थी। पर वह फिजिकल पेन है। 18 साल का जो स्ट्रगल रहा है उसमें जो इंटरनल मुक्के लगे हैं, वे मुक्के ज्यादा हिलाते हैं। अनुराग सर ने एक ही बात कही थी कि विनीत अगर बॉक्सर नहीं बनोगे तो ‘मुक्काबाज’ फिल्म नहीं बनेगी। बस यही चीज दिमाग में गूंजती रहती थी, कि बस अब तो मेरे हाथ में है। और यह मौका किसी भी कीमत पर नहीं चूकना है। जब मैं शुरु में ट्रेनिंग लेने पहुंचा तो मैं सोचता था कि मैं अब ऐसे मारुंगा, ऐसे बचाउंगा तब तक वो 5-7 मुक्के मार कर पॉजीशन चेंज करके फिर मुक्के बरसा रहे होते थे। क्योंकि मुक्के इतने फास्ट आते हैं कि आप रिएक्ट ही नहीं कर पाते हो। जब पता चले कि अरे ये गीला गीला क्या है, तो पता चले अरे ये तो खून है।
35 साल में बॉक्सिंग से लोग रिटार्ड होते हैं आप सीखने निकल पड़े, प्रेरणा कहां से मिली?
मेरे जीवन में मेरे पिता जी का बहुत बड़ा प्रभाव रहा है। उन्होंने मुझे एक चीज सिखाई है, 2 और 2 को जोड़ेंगे तो 4 ही होगा, यही सबसे बड़ा सत्य है। उन्होंने हमेशा बोला कि लाइफ में कोई शॉर्टकट मत लेना। उन्होंने हमेशा कहा, हारियो ना हिम्मत, बिसारियो ना हरी नाम। तो हिम्मत ना हारने की ही उन्होंने हमेशा सलाह दी है।
‘मुक्काबाज’ को लिखने का थौट्स आपके दिमाग में कहां से आया?
‘गैंग्स ऑफ वासेयपुर’, ‘बॉम्बे टॉकीज’ और ‘अगली’ जैसी फिल्मों में अभिनय करने के बाद मुझे उसी तरह के किरदार ऑफर होते थे। पर मैं कुछ अलग करना चाहता था, अलग फिल्में भी बन रही थी पर मेरे लिए नहीं। मैं ऑडिशन भी दे रहा था, मैंने जो फिल्में की उसके लिए नॉमिनेशन भी मिला पर कुछ नया नहीं मिल रहा था। तब मेरे जहन में आया कि अगर मुझे कहीं से कुछ अलग नहीं मिल रहा है तो खुद से कुछ लिखते हैं। तो मेरे जीवन का जो अनुभव रहा, मैं एक स्पोर्ट्स पर्सन रहा, मैंने कुछ चीजें ऐसी देखी जो जिनका जिक्र नहीं होता। और मैंने वह देखा और फील किया ही था। तो वह हिस्सा उठाकर मैंने स्क्रिप्ट लिखी। बॉक्सर था वह किरदार तो मैंने फिजिकल ट्रेनिंग उसी वक्त से शुरु कर दी थी। लगभग 3 साल तक स्क्रिप्ट लेकर भटका, आखिर में अनुराग सर ने मुझे लीड रोल में लिया और फिल्म बनानी शुरु की।
आप स्पोर्ट्स से बचपन से जुड़े थे, एक्टिंग की तरफ झुकाव कब आया?
एक्टिंग का शौख वैसे तो बचपन से था, पर कभी ये नहीं सोचा था कि इसे अपना प्रोफेशन बनाउंगा। एक बार मैंने जब अपने दोस्तो के सामने एक्टर बनने की बात कही तो सब मजाक उड़ाने लगे। उसके बाद मैंने किसी को नहीं बताया बाद में मेडिकल कॉलेज गया वहां पर सास्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। तब मुझे महसूस हुआ कि मुझे यही करना है। और मैं उसके बाद उससे खुद को अलग नहीं कर पाया। उसके बाद टैलेंट हंट के माध्यम से मैं ऑडिशन देने निकल पड़ा। इसमें मेरी बहन ने मेरी मदद की और स्ट्रगल का कारवां शुरु हो गया।
बीते 18 सालों में आपने रिजेक्शन बहुत देखे खुद को कैसे संभाला और स्ट्रगलर के लिए क्या कहेंगे?
चाहे हॉस्टल में चोरी से रहना पड़ा हो, गिनकर रोटियां खानी पड़ी हों या घर का किराया ना दे पाने पर गालियां सुननी पड़ी हों, इसका इल्जाम मैंने किसी को ऊपर नहीं डाला। क्योंकि एक्टिंग में आने का निर्णय मेरा खुद का था, इसके लिए मुझे पता था कि चाहे जो भी हो मुझे ही सहना होगा। पर हां जो लोग दूर दराज से एक्टर बनने का सपना लेकर मुंबई आते हैं वे मेरी तरह बचपना वाला निर्णय ना लें। वे छुट्टियों में 20 दिन के लिए मुंबई आएं और देखें कि यहां एक्टर बनने के लिए क्या क्या करना पड़ता है, अगर उससे फाइट कर सकते हैं तभी पूरी तरह से इसमें कूंदें। अगर ऐसा होगा तो आपको मेरी तरह जीवन के 18 साल बर्बाद नहीं करने पड़ेंगे आपको जल्दी अच्छे रोल मिलने शुरु हो जाएंगे।