बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीएमसी को फटकार लगाते हुए पूछा कि शहर का जो गंदा पानी समुद्र में छोड़ा जा रहा है आखिर क्यों उसे प्रक्रिया करके नहीं किया जा रहा है? कोर्ट ने इसकी जांच करने के लिए महाराष्ट्र प्रदूषण महामंडल को कहा और हर तीन महीने में बीएमसी से रिपोर्ट भी मांगने का आदेश दिया।
दाखिल की गयी थी याचिका
सिटीजन सर्पल फॉर सोशल वेलफेयर एंड एजुकेशन नामकी संस्था के शहजाद नक्की ने बॉम्बे हाई कोर्ट में इस बाबत एक याचिका दाखिल की थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते समय कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
क्या था याचिका में?
आपको बता दें कि विदेशों में शहरों का गंदा पानी जो निकलता है उसे प्रक्रिया करके यानी उस पानी में से कचरा निकाल कर और फिल्टर करके उसे समुद्र में छोड़ा जाता है लेकिन अपने यहां शहरों का पानी कचरे सहित समुद्र में मिल जाता है जिसमें बड़ी मात्रा में प्लास्टिक, कपड़े, धातु अन्य सामान रहते हैं। ये कचरा समुद्र में मिलकर जिव जंतुओं को नुकसान तो पहुंचाता ही है साथ ही समुद्र का पानी और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। इसी बात को याचिका द्वारा कोर्ट में बताया गया है।
ड्रेनेज नालियां एक दुसरे से नहीं हैं जुड़ी
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडळ की तरफ से एडवोकेट शर्मिला देशमुख ने कोर्ट को बताया कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 2595 लाख लीटर प्रति दिन है। जबकि प्लांट से हर दिन मात्र 2016 लाख लीटर पानी ही प्रक्रिया किया जाता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि शहर की जो ड्रेनेज नालियां हैं वे एक दुसरे से जुड़ी नहीं हैं। इसीलिए पानी बाहर कम आ पाता है।
'नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट होंगे स्थापित'
इस बारे बीएमसी की तरफ से वरिष्ठ वकील अनिल साखरे ने अदालत को बताया कि नगर निगम जल्द ही शहर में 8 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करेगा और जल निकासी के लिए लगभग 2012 किमी नए नालों का निर्माण किया गया है साथ ही प्रशासन की तरफ से और अधिक नालियों को बनाया जाएगा।
बीएमसी ने दिया आदेश
इस पर कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि नगर निगम को सभी नालियों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ना चाहिए। इसी तरह, नई नालियों के निर्माण में वृद्धि की जानी चाहिए। इस काम को पूरा करने के लिए, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसका ध्यान रखना चाहिए।