आज देश भर में लोग दिवाली की खुशियां मना रहे हैं। एक दूसरे को दिवाली की बधाई और शुभकामनाएं दी रहे हैं। मिठाई, कपड़े और उपहार बांट रहे हैं। अपने घर को रोशन करने के लिए दिया जला रहे हैं। शाम तक तमामा टीवी के समाचार चैनलों पर खबर दिखाई जाएगी कि, देश भर में धूमधाम से मनाई गई दिवाली। लेकिन दिवाली मनाने वाले लोगों का ध्यान कभी अन्नदाताओं की तरफ भी गया, कि उन लोगों ने दिवाली मनाई की नहीं, उनके बच्चों ने मिठाई खाई की नहीं, उन्होंने कपड़े पहने की नहीं, उनके भी घरों में दीये जलाए गए या नहीं। शायद इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाएगा, क्योंकि किसान आधुनिक इंडिया में कहीं भी फिट नहीं बैठते।
दिवाली के मौके पर इस महंगाई को देखते हुए किसानों का दिवाला निकल रहा है। अब जबकि खेतों की बुवाई सर पर है तो उनके सामने महंगाई सुरसा की नाई मुंह बाए खड़ी है। धान की फसल घर पर आ गई है लेकिन इसे आधे से कम दाम में बेचना सुसाइड करना जैसा होगा। यही खेती है, जितना लगाया उससे भी कम पाया। चुनोती यही कम नहीं होती। अभी गेहूं, सरसों, मटर, आलू की फसलों की बुवाई हो रही है, लेकिन उसमें भी लागत लगनी है। अब किसान करे तो करे क्या।
इस समय आलू के बीज 35 से 40 रुपये किलो मिल रहे हैं। किसान कितना खरीद कर बोएगा, और जब किसान की फसल तैयार हो जाएगी तो यही आलू की फसल 10 रुपये से भी कम दाम में बिकेगी।
यह तो रही इतनी से बात, ऊपर से प्राकृतिक आपदाएं, कभी भारी बारिश तो कभी सूखा, तो कभी फर्टिलाइजर की कमी। इन सबसे भी किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचता है। उनकी फसलें या तो नष्ट हो जाती हैं या फिर खाने लायक भी नहीं होती।
सब्जी और दालों के आसमान छूते दामों से लोगों के घरों का बजट बिगड़ चुका है। एक ओर जहां त्योहारों की तैयारी चल रही है तो दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दामों ने सर्दी के मौसम में भी लोगों के माथे पर पसीना ला दिया है। हालत यह हैं कि लोगों की थाली से चटनी और सलाद गायब हो चुका है।
दालों के साथ ही आलू और प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण यह आम आदमी की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। लॉॅकडाउन के दौरान भी लोगों को सब्जी और दालें खरीदने में इतनी परेशानी नहीं हुई जितनी लोगों को अब हो रही है। सब्जी और दालों की आसमान छूती कीमतों ने गरीबों ही नहीं अच्छे-अच्छे घरों का बजट बिगाड़ दिया है।
किराना व्यापारी लालमणि का कहना है कि, बड़े बड़े व्यापारी जमाखोरी करते हैं और फसलों की कीमतों को बढ़ाते हैं। फिर बढ़े दामों में बाजार में लाते हैं। साथ ही बीते दिनों सरकार की ओर से किसानों के लिए लाए कृषि बिल के विरोध में देश के कई राज्यों के किसानों ने इसका विरोध किया, कई प्रदेशों के किसानों ने मंडियां बंद करा दीं। इसके कारण इनकी कीमतों में इजाफा हुआ है।
सब्जी विक्रेता लल्लन ने सब्जी के बारे में बताया कम पैदावार और लॉकडाउन होने के चलते किसानों ने देरी से फसल बोई है। कोल्ड स्टोरेज से पर्याप्त मात्रा में आलू निकलने का असर यह हुआ कि आलू के दाम ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गए। इसके अलावा आवारा जानवरों के चलते भी पैदावार में असर हुआ है। जिसके चलते हरी सब्जियों के दाम बढ़े हैं। कारण जो भी हो स्थानीय लोगों का मानना है कि दाम बढ़ने का प्रमुख कारण अवैध भंडारण, जमाखोरी और सरकार का जमाखोरी पर नियंत्रण न होने से दामों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। जिसके चलते लोगों को अपने परिवार के लिए दो वक्त के भोजन की व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा है।
किसानों की चुनोतियाँ बढ़ रही है, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वो भी तब जब भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खेती ही है। किसानों को अनन्दता कहा जाता है, लेकिन खुद किसान और उनके बच्चे ही भूखे मरते हैं। इसके लिए सरकार की नीतियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। आज भी किसान वैज्ञानिक पद्धति की जगह पारंपरिक पद्धति से खेती करता है। इसलिए सरकार को एक बार फिर नए सिरे से सोचना होगा। और ऐसी नीति बनानी होगी जिससे किसानों का भी भला हो और देश का भी।