केंद्र सरकार ने अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2018 के एक बिल पारित किया है जिसके मुताबिक अब कक्षा आठवीं तक के छात्र फेल नहीं होंगे। गुरुवार को राज्यसभा से इस बिल को मंजूरी मिल गयी, जबकि लोकसभा से यह बिल पहले ही पास हो चुका है। हालांकि इस बिल का वाम दलों ने विरोध किया लेकिन अन्य दलों की ध्वनीमत से बिल को पारित कर दिया गया।
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उच्च सदन में नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2018 पर चर्चा के जवाब में बोलते हुए कहा कि इस बिल को अमल में लाना है या नहीं इस पर राज्यों को तय करना है। राज्य इसके लिए स्वतंत्र है कि वे यह तय कर सके कि स्कूलों में अनुत्तीर्ण हुआ छात्र उसी कक्षा में रहेगा या फिर अगली कक्षा में जाएगा। आपको बता दें कि इस तरह की मांग पहले से ही उठ रही थी कि बच्चों को कक्षा आठवीं तक फेल न किया जाए।
जावड़ेकर ने आगे कहा कि अक्सर कहा जाता है कि पांचवीं कक्षा के छात्रों को तीसरी कक्षा का गणित भी नहीं आता। ऐसे में व्यवस्था में बदलाव की बात की जा रही थी। उन्होंने आगे कहा कि सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की बैठक में भी बदलाव किए जाने की बात तय की गयी थी और स्थायी समिति की बैठक में भी इस बात पर एक राय बनी थी। जावड़ेकर के अनुसार कोई बोर्ड परीक्षा नहीं होगी बल्कि स्कूलों में ही परीक्षा होगी। फेल होने वाले छात्रों को दो महीने बाद पास होने का एक और मौका भी दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में आठवीं कक्षा तक बच्चों के स्कूल छोड़ने की दरें कम हैं लेकिन फेल होने या फिर फेल होने की डर से दसवीं कक्षा में स्कूल छोड़ने की दरें काफी बढ़ जाती हैं।
इससे पहले विधेयक पर हुयी चर्चा में कई सदस्यों ने आशंका जताते हुए कहा कि यह नियम लागू होने के बाद बच्चों की रूचि पढाई ने नहीं रहेगी, जबकि कई सदस्यों ने यह भी कहा कि परीक्षा में पास होने की जिम्मेदारी बच्चों पर नहीं डाली जानी चाहिए। कई सदस्यों ने बजट में शिक्षा पर होने वाले खर्च में वृद्धि का सुझाव दिया।