भारत देश ने अपने 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया यानी भारत को आजाद हुए 73 साल हो गये। इन 73 साल में भारत चांद तक पहुंच चुका है और मंगल पर जाने की राह पर निकल चुका है। लेकिन इस विकास की सड़क पर सरपट भागते भारत का एक और चेहरा है जो कि अंधकार से युक्त है। भारत देश का सबसे अधिक विकसित और स्मार्ट शहर मुंबई को माना जाता है। इस शहर की एक हकीकत यह भी है कि नवसाचा पाडा नामके एक गांव में रहने वालों को आजादी के 72 साल बाद तक भी अंधकार की बेड़ियों से मुक्त नहीं हुए हैं। यहां मोदी सरकार की प्रधान मंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) योजना हो या फिर हर घर गैस सिलेंडर पहुँचाने वाली उज्ज्वल योजना या फिर स्वच्छता मिशन के तहत हर घर शौचालय योजना। यहाँ हर योजना दम तोड़ती नजर आती है।
एक महीने पहले घर में आई बिजली
मुंबई के बीचो बीच है आरे कॉलोनी का जंगल।
करीब 500 एकड़ में फैले इस जंगल के आसपास कांक्रीट के जंगल खड़े हो गये हैं, जहां घरों की कीमत लाखो करोडो में है।
जबकि जंगल के अंदर भी ऐसे कई छोटी-छोटी बस्तियां या फिर गांव बसे हैं जहां की जनसंख्या सैकड़ों या फिर हजारों में होती है।
इन्हीं में से एक गाँव है नवशाचा पाड़ा, नवशाचा पाड़ा एक मराठी शब्द है। वैसे नवस का अर्थ मन्नत होता है... तो उसी नवस से मिल कर बना है नवशाचा पाड़ा। इस गांव के लोग आदिवासी मूल के हैं। इनका दावा है कि ये लोग यहां 100 सालों से रह रहे हैं। पहले इनके दादा, फिर पिताजी अब ये इनकी ये तीसरी पीढ़ी।
लेकिन इनके घरों में पिछले महीने ही बिजली आई है। एकबारगी आपको सुन कर यकीं न हो लेकिन है या सौ फीसदी सत्य।इस गांव में आजादी के 73 साल तक बाद भी बिजली ही नहीं पहुंची थी। यही नहीं यह बिजली भी कुछ ही घरों में आई है अभी अन्य घरों में आना बाकी है।
'कई पीढियां अंधेरे में ही पैदा हुई और अंधेरे में ही मर गईं'
आदिवासी के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक समिति है, नाम है आदिवासी हक संवर्धन समिति।
इस समिति के एक कार्यकर्ता है प्रकाश भोईर।
प्रकाश भोईर का कहना है कि हमारी जमीन लेकर यहां पशु अस्पताल बनाया गया है।
साथ ही फोर्स वन (मुंबई में 26/11 के हमले के बाद दिल्ली से फोर्स वन आई थी, जिसे आने में काफी देर हो गयी थी. सुरक्षा को देखते हुए मुंबई के आरे में फोर्स वन की स्थापना की गयी है।
) को भी जगह दी गयी है।
लेकिन आज परिस्थिति ऐसी हो गयी है कि 100 साल से भी अधिक समय तक यहां रहते हुए भी हमे यहां हर चीज के लिए NOC लेना पड़ता है।
पशु अस्पताल और फोर्स वन वाले हमारा पुनर्वसन के नाम पर पिछले 40 साल तक NOC लटका के रखे थे और जब तक NOC नहीं मिल रही थी तब तक बिजली आना यहां नामुमकिन था।
इसीलिए हमारी कई पीढियां अंधेरे में ही पैदा हुई और अंधेरे में ही मर गईं।
भोईर कहते हैं कि हमने NOC पाने के लिए कई बार आंदोलन तक निकाला। कई नेताओं से मिले भी लेकिन कुछ नहीं हुआ। आखिर 40 सालों के प्रयासों के बाद हमारे गाँव के 75 घरों में बिजली तो आ गयी लेकिन पुनर्वास का क्या? हमे घर बनाने के लिए, खेती करने के लिए, रास्ता बनाने के लिए भी परमिशन लेनी पड़ती है। इन लोगों के हमारे पुनर्वास की बात कही थी लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
यही नहीं यहां रहने वाले कई लोग इस बात से भी आशंकित हैं कि मेट्रो-3 कारशेड का निर्माण भी यहीं हो रहा है उसे लेकर भी इन लोगों को यहां से हटाने की बात आये दिन सुनने को मिलती है।
इसी गाँव के रहने वाले राकेश शिगवण का कहना है कि हमें NOC नहीं दे कर महाविद्यालय वाले हमारे अधिकारों का एक तरह से हनन कर रहे थे, जब हमने एट्रोसिटी के तहत केस दर्ज कराने की बात कही तब कहीं जाकर हमें NOC मिली।
राकेश कहते हैं कि जब हमारे गांव में बिजली आई तो हमने किसी त्योंहार की तरह खुशियां मनाई। होली और दिवाली दोनों साथ में मनाया।
'आजादी सही में मिली है?'
हम भले ही भारत की आजादी का 73वां साल धूमधाम से मना चुके हो लेकिन आपको लगता है कि क्या भारत में रहने वाला हर परिवार शख्स आजाद है। आज भले ही हम मंगल तक जाने का रास्ता तय कर रहे हैं, आज भले ही केंद्र की मोदी सरकार हर घर बिजली पहुंचाने का झूठा दंभ भरती हो, आज भले ही सरकार 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनाने की बात करती हो लेकिन इन सबका कुछ भी मतलब नहीं है, जब तक विकास की इस बहती गंगा से हर आदमी की प्यास न बुझती हो।