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अस्तित्व की लड़ाई !


अस्तित्व की लड़ाई !
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सुनो मुंबईवालो... यहां से दूर दूर तक शहर में जब कोई बच्चा रोता था...
तब मां कहती थी... सोजा बेटे... नहीं तो पुलिस आ जाएगी...
और बच्चा चुपचाप सो जाता था। 
पर आज मुंबई पुलिस की यह शान मिट्टी में मिला दी गयी...गोवा ट्रैफिक पुलिस का डंका बजता है। पर्यटक और स्थानीय लोगों में दहशत रहती है। वही हाल कर्नाटक में भी है। किसी को माफी नहीं, किसी को कोई छूट नहीं, मदद के लिए तत्पर पर नियम तोड़ने पर माफी नहीं। मध्य प्रदेश, गुजरात में भी यही हाल है। सिक्किम की सड़के भारी खतरनाक हैं फिर भी टैक्सी वाले ट्रैफिक पुलिस से थर थर कांपते हैं। नो पार्किंग में क्षण भर भी रुकने को तैयार नहीं। 

पर महाराष्ट्र में इसकी सूरत अलग है। ट्रैफिक के नियमों की यहां पर सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। बीते कुछ दिनों में मुंबई का हाल बेहाल हो हुआ है। गाड़ियों की संख्या लगातार बढ़ी है। दोनो तरफ पार्किंग बढ़ी है। पर सड़कें तो वही हैं। उस पर खड्डे-बिड्डे निकले हुए हैं। इसके लिए पहले मुंबई ट्रैफिक पुलिस को गालियां पड़ती थी अब मार पड़ने लगी है। 

अब यह सवाल उठना लाजमी है कि कहीं मीडिया में फेमस होने के लिए तो इन घटनाओं में वृद्धि नहीं हो रही है। आज कल मुंबई पुलिस पर हमले की खबरें हर रोज आ रही हैं, जिससे लोगों को इन घटनाओं पर भरोसा हो रहा है। 

खाकी के प्रति लोगों के मन से जो दहशत निकली है, वह खतरनाक हो सकती है। क्या पुलिस को लोगों ने सिर्फ कागभगोड़ा बना दिया है? मीडिया वाले, राजनैतिक कार्यकर्ता, टपोरी, चरसी, दारूखोर कहीं सिग्नल तोड़ते हैं, तो कहीं बिना हैलमेट गाड़ी चलाते हैं। ट्रैफिक पुलिस को दम देते हैं। लोगों पर गाड़ी चढ़ाते हैं, जान ले लेते हैं। इसका बड़ा कारण सोश्यो-सायकोलॉजिकल है।  लेकिन उससे भी बड़ा कारण पुलिस का भय खत्म होना है। अगर मुंबई पुलिस को अपना दबदबा वापस चाहिए तो ‘पुलिस’ बनना पड़ेगा।

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