मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर यात्रा करने वालों को अभी कम से कम 12 साल तक टोल से कोई राहत नहीं मिलेगी। राज्य सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक हलफनामा पेश कर स्पष्ट किया कि टोल 2030 तक वसूला जाना है। एक याचिकाकर्ता ने याचिका के जरिये यह मांग की थी कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे की लागत से अधिक कमाई हो जाने के बाद इस टोल वसूली को बंद किया जाए। अब इस मामले में अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी।
क्या था मामला?
आपको बता दें कि जब से मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे बना था तब से लेकर 2019 तक टोल के जरिये 2869 करोड़ रूपये वसूल करने का लक्ष्य था लेकिन यह लक्ष्य 2016 में ही पूरा हो गया। लोग इस आशा में थे कि जब लक्ष्य पूरा हो गया है तो MMRDC टोल वसूलना बंद कर देगा, बावजूद इसके MSRDC द्वारा टोल वसूली जारी है।
टोलबंदी की याचिका कोर्ट में हुई दाखिल
जब इस बात की खबर याचिककर्ता प्रविण वाटेगावकर को पता चली तो उन्होने 'एमएसआरडीसी' से टोलबंदी को लेकर पत्र व्यवहार शुरू किया। लेकिन 'एमएसआरडीसी' ने टोल बंद करने से साफ़ इंकार कर दिया। इसके बाद वाटेगावकर ने इसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्युरो से की, लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। आखरिकार आजिज आकर वाटेगावकर ने याचिका दाखिल कर कोर्ट से इसकी गुहार लगाई।
अपनी याचिका में वाटेगावकर ने कहा कि टोल वसूली लक्ष्य पूरा होने के बाद भी MSRDC द्वारा टोल वसूला जा रहा है, जो कि अवैध है और राज्य सरकार अवैध रूप से अपना खजाना भर रही है, इसीलिए टोल बंद किया जाए।
2030 तक है कंसेशन पीरियड
इस बारे में राज्य सरकार ने हलफनामा दायर कर अपना पक्ष साफ़ किया और कहा कि MSRDC का करार म्हैसकर इन्फ्रास्ट्रक्टर लिमिटेड कंपनी से 10 अगस्त 2019 तक हुआ है. तब तक कंपनी टोल वसूल करती ही रहेगी। और 2019 में इस कंपनी से करार समाप्त हो जाने के बाद MSRDC कोई दूसरी कंपनी से 2030 तक करार करेगी। यही नहीं राज्य सरकार ने यह भी कहा कि टोल से छोटे वाहनों को भी बाहर नहीं रखा जा सकता।