मुंबई में पिछले 5 सालों में सार्वजनिक मुद्दों को कोई महत्व नहीं दिया गया बल्कि नगरसेवकों ने रास्ते और चौक के नामकरण में काफी दिलचस्पी दिखाई। मुंबई की सड़कों पर बने गड्ढे से लोग त्रस्त थे लेकिन नगरसेवको ने सड़क और चौक के नाम बदले जाने को लेकर अधिक उत्साहित थे। यह कहना है प्रजा फाउंडेशन एनजीओ का।
प्रजा फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट मुंबईकर, सड़क और गड्ढे से संबंधित अन्य जानकारी देते हुए बताया कि मार्च 2012 से लेकर 2016 के दौरान नगरसेवकों के द्वारा पूछे गये छह प्रश्नों में से एक प्रश्न सड़क और चौक के नामकरण से संबंधित था। 2017 में मनपा चुनाव में सड़क के मुद्दे पर बड़े जोर शोर से शिवसेना को घेरने वाली बीजेपी ने भी सड़क और गड्ढे को लेकर मात्र 18 प्रश्न ही पूछे। जबकि शिवसेना ने मात्र 3 प्रश्न।
227 में से 88 नगरसेवकों ने मार्च 2012 से लेकर दिसंबर 2016 के दौरान प्रभाग समिति में हर दिन नगरसेवकों द्वारा 5 प्रश्न पूछे गये हैं। प्रभाग समिति में पिछले 5 सालों में बीजेपी की उज्ज्वला मोडक और समाजवादी पार्टी की ज्योत्सना परमार ने एक भी प्रश्न नहीं पूछा था। हर साल मुंबई कर डेंगी और मलेरिया की चपेट में आते हैं लेकिन इस पर भी नगरसेवकों का कोई ध्यान नहीं गया।
चुनाव के समय सभी राजनीतिक पार्टियाँ ने अपने एजेंडे में सड़क, गड्ढे, स्वास्थ्य जैसे मुद्दे शामिल किये थे लेकिन जीतने के बाद सभी नगरसेवक उदासीन हो गये। सड़क पर बढ़ते गड्ढों की तादाद को देखते हुए बीएमसी की तरफ से वॉइस ऑफ़ सिटिजन मोबाइल अप्लिकेशन लांच किया था, लेकिन दो सालों में शिकायतों की संख्या एक हजार से बढ़कर 38 हजार हो गयी। इसे देखते हुए एप्लीकेशन को बंद कर दिया गया।
प्रजा फाउंडेशन के निताई मेहता ने कहा कि अगर मुंबईकरों को शिकायत दर्ज करने का मौका दिया जाए तो वे बड़ी संख्या में विरोध दर्ज होता है। एक आंकड़े के अनुसार 61 फीसदी शिकायत को मनपा ने हल किया।