सांसद गोपाल शेट्टी ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांता दास जी को एक विस्तृत पत्र लिखकर एनबीएफसी के विषय में चिंता का संदर्भ दिया है। सांसद गोपाल शेट्टी का कहना है की कैसे एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी), आरबीआई द्वारा आंशिक रूप से विनियमित होने के बावजूद छोटे एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) से उच्च ब्याज दरों की मांग कर रही है उनसे, जो अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का इरादा रखते हैं।
सांसद गोपाल शेट्टी ने पत्र मे लिखा है की ,"एनबीएफसी को कंपनी अधिनियम 1956 के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI ) के साथ पंजीकृत होना आवश्यक है और ये आरबीआई द्वारा विनियमन के अधीन हैं और एनबीएफसी को आरबीआई द्वारा एक विशेष तरीके से संचालित करने के लिए लाइसेंस दिया जाता है। इस प्रकार एनबीएफसी, एक बैंक न होते हुए भी वित्तपोषण का काम करती है और आम जनता को ऋण और अग्रिम के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान करती है। यहां तथ्य यह है कि जब कोई एमएसएमई अपने सख्त मानदंडों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से ऋण प्राप्त करने में विफल रहता है, तो बैंकों की तुलना में ऋण प्रसंस्करण के लिए तेज़ समय और न्यूनतम दस्तावेज़ीकरण के साथ एनबीएफसी ही एकमात्र आशा होती है।
मेरी जानकारी के अनुसार, आज भारत में लगभग 6 करोड़ से अधिक एमएसएमई हैं और उनमें से केवल लगभग २ करोड़ से अधिक पंजीकृत हैं। और शेष विभिन्न कारणों से अपंजीकृत हैं। इस प्रकार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक केवल पंजीकृत एमएसएमई को अटेंड करते हैं और बाकी के पास कोई विकल्प नहीं होने के कारण वे एनबीएफसी के मार्ग को अपनाने के लिए मजबूर होते हैं। इस प्रकार, स्थिति का लाभ उठाते हुए, ये एनबीएफसी एमएसएमई ऋण के लिए १५% से २७% के बीच ब्याज दर का दावा करते हैं।
आगे सांसद लिखते हैं की,"जबकि उन बैंकों की तुलना में जो केवल ९% से १०% ब्याज दर पर समान ऋण प्रदान करते हैं। भारत के माननीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी हमेशा "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास" को बढ़ावा देते हैं और यह संदेश सभी के लिए अनुसरण करने योग्य है और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ने में मदद मिलती है। इस प्रकार, यहाँ बैंकों को भी इन एमएसएमई को उनके विकास पथ में मदद करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। मेरी जानकारी के अनुसार सरकारी बैंकों की इन एनबीएफसी के साथ कुछ सांठगांठ है और वे एनबीएफसी को कम ब्याज दर पर भारी ऋण देने के बाद संतुष्ट होकर बैठ जाते हैं। और बदले में ये एनबीएफसी, इस बेचारे एमएसएमई से बहुत अधिक ब्याज दर की मांग करते हैं जब की एमएसएमई स्वयं बहुत कम ब्याज दर पर काम करते हैं। उनके व्यवसाय में मार्जिन भी कम है। इस प्रकार, एमएसएमई एनबीएफसी को भारी ब्याज देते रहते हैं और पूरा बिजनेस मॉडल, जिसे मदद करनी चाहिए, पूरी तरह से विफल हो जाता है।
मुंबई में वर्तमान में केवल रियल एस्टेट ही श्रमिकों को अधिक नौकरियां प्रदान करता है और जीएसटी के माध्यम से सरकार को कर भी प्रदान करता है। पुरानी इमारतों के पुनर्विकास का काम बड़ी संख्या में किया जाता है लेकिन एनबीएफसी द्वारा अधिकतम ऋण अधिक ब्याज पर दिया जाता है - ब्याज पर ब्याज। इससे आवासीय भवनों की दरें आसमान पर पहुंच रही हैं और इसका खामियाजा मध्यमवर्गीय परिवारों को भुगतना पड़ रहा है।"
"इस पत्र के साथ, मैं आपसे हस्तक्षेप करने और यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करूंगा कि एनबीएफसी को आरबीआई द्वारा अधिक सख्ती से विनियमित किया जाए और मैं एमएसएमई से दावा किए जा रहे ब्याज पर अधिकतम १२% की सीमा का सुझाव दूंगा क्योंकि इससे निश्चित रूप से उनके संबंधित व्यवसाय में उन्हें लाभ प्राप्त करने और सफल होने में मदद मिलेगी।" इस प्रकार की मांग भी सांसद गोपाल शेट्टी ने पत्र के अंत में रखी है।