पुलिस महकमे में करप्शन किस कदर व्याप्त है यह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन कोई-कोई पुलिस वाला ऐसा भी होता है जो सबसे अलग होता है, यानी सही मायनों में सिंघम। इसी कड़ी में एक सिंघम को ट्रैफिक विभाग में फैले करप्शन को उजागर करने की कीमत निलंबित होकर चुकानी पड़ी।
आवाज उठाना पड़ गया महंगा
इस सिंघम का नाम सुनील टोके है जो ट्रैफिक पुलिस विभाग में हवलदार के पद पर तैनात थे।
उन्होंने इस करप्शन के खिलाफ अपने ही विभाग का स्टिंग ऑपरेशन किया था, सोशल मीडिया में विडियो भी वायरल किया, न्यूज़ चैनलों से बात की, यही नहीं हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल किया।
लेकिन मंगलवार को उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा और उन्हें नौकरी से निलंबित कर दिया गया।
सुनील टोके विभाग में ऊपर से लेकर नीचे तक फैले भ्रष्टाचार से काफी परेशान थे। उनको यह बात हमेशा कचोटती थी कि इस काम में सीनियर अधिकारी से लेकर मातहत तक सभी लिप्त हैं। टोके की माने तो हर बात पर पैसे का लेन देन खुले आम चलता था। उन्होंने खुद ही इस कीचड़ को साफ करने की ठानी।
उन्होंने सबसे पहले अपने ही विभाग के अधिकारियों का स्टिंग ऑपरेशन किया, अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाए। सोशल मीडिया में इन सबके खिलाफ़ आवाज उठाई। कई न्यूज़ चैनलों से भी बात की। यही नहीं इन सभी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की। इस दौरान उन्हें यह सब नहीं करने के लिए लगातार दबाव भी बनाया जा रहा था। हाईकोर्ट ने इस संबंध में कहा कि एंटी करप्शन विभाग अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADG) की देखरेख में जांच करे।
इस बारे में सुनील कहते हैं कि मंगलवार रात 11:30 बजे एक पुलिस इंस्पेक्टर और दो हवलदार मेरे घर आकर मुझे मेरा निलम्बन पत्र थमा कर चले गये। मुझे छुट्टी पर भी भेजा जा सकता था। वे आगे कहते हैं कि मैं कोई गुंडा नहीं हूं कि मुझे इस तरह से लेटर देकर कार्रवाई की गयी। मैंने अपने विभाग में फैले केवल भ्रष्टाचार को खत्म करने का विरोध किया था। लेकिन खुद मुझे ही शिकार होना पड़ा, इसके लिए भी मैं फिर से कोर्ट का रुख करूंगा।